Mai Satta Bharat Ki मैं सत्ता भारत की
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
जो देश की नदियां जोड़ना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देहातों को बदलना नहीं चाहती
लोगों को देहातों में पढ़ाना नहीं चाहती
देहातों के घर-घर शांती नहीं चाहती
धर्मों में एकता की केमिस्ट्री नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
जो अन्तर्जाती विवाह नहीं चाहती
दिल-दिल के फासले तोडना नहीं चाहती
न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं चाहती
47 से खुद को दूसरे को सौंपना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देशदीवार की अपनी ईंटें सरकाना नहीं चाहती
नंगें मेलों में हो जाये चाहे तिजोरी ख़ाली
पर गरीबों में दौलत लुटाना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
नंगें मेलों से आसाराम को खोना नहीं चाहती
रोगों को सल्तनत से मिटाना नहीं चाहती
मजहब का झगड़ा मिटाना नहीं चाहती
करप्शन को गले से हटाना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देहातों के झोपड़ें रहेंगे हज़ारों साल
दारिद्र्य को कौम से हटाना नहीं चाहती
वारिसदार गद्दी से हटाना नहीं चाहती
हो जाये यहाँ हर नारी चाहे बेइज्जत
मगर राधेमाँ को सताना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
मर जाये चाहे बेक़सूर लोग यहांपर
मगर विस्फोटों को मिटाना नहीं चाहती
वोटर्स के लिये क्राइम रेट घटाना नहीं चाहती
(अपूर्ण)
- चारुशील माने (चारागर)
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
जो देश की नदियां जोड़ना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देहातों को बदलना नहीं चाहती
लोगों को देहातों में पढ़ाना नहीं चाहती
देहातों के घर-घर शांती नहीं चाहती
धर्मों में एकता की केमिस्ट्री नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
जो अन्तर्जाती विवाह नहीं चाहती
दिल-दिल के फासले तोडना नहीं चाहती
न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं चाहती
47 से खुद को दूसरे को सौंपना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देशदीवार की अपनी ईंटें सरकाना नहीं चाहती
नंगें मेलों में हो जाये चाहे तिजोरी ख़ाली
पर गरीबों में दौलत लुटाना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
नंगें मेलों से आसाराम को खोना नहीं चाहती
रोगों को सल्तनत से मिटाना नहीं चाहती
मजहब का झगड़ा मिटाना नहीं चाहती
करप्शन को गले से हटाना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
देहातों के झोपड़ें रहेंगे हज़ारों साल
दारिद्र्य को कौम से हटाना नहीं चाहती
वारिसदार गद्दी से हटाना नहीं चाहती
हो जाये यहाँ हर नारी चाहे बेइज्जत
मगर राधेमाँ को सताना नहीं चाहती
मैं मुठ्ठीभर लोगों की वो सत्ता हूँ
मर जाये चाहे बेक़सूर लोग यहांपर
मगर विस्फोटों को मिटाना नहीं चाहती
वोटर्स के लिये क्राइम रेट घटाना नहीं चाहती
(अपूर्ण)
- चारुशील माने (चारागर)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें